आदिकाल से यह माना जा रहा है कि नशा सामाजिक बुराई है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में सोम और सुरा शब्दों का प्रयोग मिलता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि मादक द्रव्यों से व्यक्ति पहले से परिचित रहा है। वस्तुतः जैसे-जैसे व्यक्ति अपना बहुविध विकास करता गया, वैसे-वैसे नशे के भी विभिन्न तरीकों की खोज करता गया। आज तो हालत यह है कि युवाओं में नब्बे प्रतिशत किसी न किसी नशे के शिकार हैं। ये नशे की गिरफ्त में आकर तेजी से पतन की ओर जा रहे हैं।
मादक द्रव्य सेवन किसी देश की समस्या नहीं है। न ही यह समस्या नई है, पर जिस रूप में यह भारत के युवाओं में उभर कर आई है, वह चिंता का कारण अवश्य बनी है। कुछ साल पहले कुछ युवा ही नशे की पकड़ में आते थे, पर आज तो जिसे देखो नशे में झूमता दिखाई देता है। दुःख की बात यह है कि अब नशाखोरी में युवा ही नहीं, युवतियाँ भी शामिल हो गई हैं। नशाखोरी की आदतों को पूरा करने के लिए ये हर तरह के असामाजिक अपराध कर रहे हैं। यह नशे की प्रवृत्ति केवल अमीर युवाओं में ही नहीं, गरीब युवाओं में भी देखी जा रही है।