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नियमित मंत्र जप द्वारा मिल सकती है जन्म मरण की जंजाल से मुक्ति:आचार्य श्री महाश्रमण

डायमण्ड सिटि सूरत के भगवान महावीर यूनिवर्सिटी परिसर में बने भव्य संयम विहार परिसर में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शुक्रवार को गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र भाई पटेल दर्शनार्थ पहुंचे। मुख्यमंत्री के साथ गुजरात के गृहमंत्री श्री हर्ष संघवी तथा प्रदेश के मंत्री श्री प्रफुल्ल पानशेरिया भी उपस्थित थे। सभी महानुभाव प्रेक्षा भवन में स्थित आचार्यश्री के प्रवास कक्ष में पधारे और आचार्यश्री को विधिवत वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री से आशीष प्राप्त करने के उपरान्त आचार्यश्री के साथ उनका अल्पकालिक वार्तालाप का भी क्रम रहा। आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद का लाभ प्राप्त कर मुख्यमंत्री अगले गंतव्य की ओर रवाना हुए।

पर्युषण पर्वाधिराज धीरे-धीरे अपने शिखर दिवस की ओर पहुंच रहा है। शुक्रवार को इस महापर्व का छठा दिन रहा। जिसे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में जप दिवस के रूप में मनाया गया। प्रातःकालीन के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का शुभारम्भ युगप्रधान आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। साध्वी मार्दवयशाजी, साध्वी चैतन्ययशाजी व साध्वी कमनीयप्रभाजी ने जप दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया।साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने जनता को जप दिवस पर जप और मंत्र आदि से संदर्भित प्रेरणा प्रदान की। मुनि नम्रकुमारजी व मुनि विनम्रकुमारजी ने तीर्थंकर अरिष्टनेमि के जीवनवृत्त का वर्णन किया। दस धर्मों में तप और त्याग धर्म पर साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने गीत का संगान किया तथा मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने तप और त्याग धर्म पर अपनी विचाराभिव्यक्ति दी।

शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पर्युषण पर्वाधिराज के छठे दिन ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के वर्णन क्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा कि परम आराध्य भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का प्रसंग चल रहा है। चौथे भव में पांचवें देवलोक का जीवन सम्पन्न कर भगवान महावीर की आत्मा ने मनुष्य के रूप में कौशिक नाम के ब्राह्मण बने। जीवन जीते-जीते जीवन के अंत में तापस बन गए। वे साधना में लग गए। जीवन के सान्ध्यकाल में कुछ विशेष साधना हो सके तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। वे अगले भव में पुष्यमित्र के नाम से उत्पन्न बनते हैं। गृहस्थ अवस्था में कुछ समय रहने के उपरान्त वे परिव्राजक बन गए। वह आयुष्य सम्पन्न कर वे पुनः अग्निद्योत नामक ब्राह्मण बनते हैं। अपने नवमें भव में दूसरे देवलोक में देव बने। अनेक भवों के आयुष्य को पूर्ण करते और एक-एक देवलोक में पहुंचते और वहां का आयुष्य पूर्ण कर पुनः मनुष्य के भव में आते। इस प्रकार अपने अठारहवें भव में वे पुनः मनुष्य के रूप में पोतनपुर नामक नगरी के राजा प्रजापति के पत्नी भद्रा के गर्भ से अचल और दूसरी रानी मृगावती के पुत्र त्रिपृष्ठ के रूप में उत्पन्न हुए। आयुष्य बढ़ने के साथ विद्याओं में निपुण हुए। राजतंत्र में राजा सेवा के लिए होता है तो लोकतंत्र में राजनेता सेवा के लिए होते हैं। सत्ता का घमण्ड नहीं करना चाहिए। सत्ता सेवा के लिए है, उसके अनुरूप जनता की सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। त्रिपृष्ठ ने प्रति वासुदेव का वध कर वासुदेव बनता है और बहुत बड़े राज्य का शासक बन जाता है।

शासन के दौरान वैसा कर्म करने के उपरान्त त्रिपृष्ठ की आत्मा सातवें नरक लोक में उत्कृष्ट आयुष्य प्राप्त कर सातवें नरक में उत्पन्न होते हैं। अगले जन्म में शेर बनते हैं। शेर योनि के बाद पुनः नरक में जाते हैं। इस प्रकार जन्म-मरण करते हुए 23 भव में पुनः मनुष्य बनते हैं। नन्दन के रूप में राजा बनने के बाद लाखों वर्ष तक गृहस्थ रहने के बाद नन्दन राजर्षि बन गया। विशिष्ट तपस्या कर तीर्थंकर नाम गोत्र का उपार्जन कर लिया। उसके बाद भगवान महावीर की आत्मा दसवें देवलोक में विराजमान होती है। भगवान महावीर की यात्रा के उपरान्त आचार्यश्री जप दिवस पर उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि पर्युषण पर्वाधिराज के दिवस व्यवस्था के अंतर्गत आज जप दिवस है। यह साधना का बड़ा आसान प्रयोग है। कोई ऐसा अक्षर नहीं है, जो मंत्र नहीं बन सकता। कोई ऐसी वनस्पति नहीं जो औषधि न हो और कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होता, जिसमें कोई अर्हता नहीं होती। जप तो जन्म-मरण का नाश करने वाला हो सकता है। जप का प्रयोग भाव शुद्धि का अच्छा साधन बन सकता है। इसके बाद भी आदमी को जितना जहां संभव हो, अपने कार्य के प्रति भी जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने कर्त्तव्य के प्रति सजग व जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने जप दिवस के संदर्भ में चतुर्विध धर्मसंघ को थोड़ी देर जप का प्रयोग भी कराया।

अंत में नित्य की भांति अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। अखण्ड जप में संभागी बने सदस्यों ने आचार्यश्री के समक्ष गीत को प्रस्तुति दी।

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