पर्युषण महापर्व का सातवां दिवस। ध्यान दिवस का समायोजन। महावीर समवसरण में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का शुभारम्भ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। तीर्थ एवं तीर्थंकरों पर चर्चा के संदर्भ में भगवान पार्श्वनाथ के जीवनवृत्त को मुनि पार्श्वकुमारजी व मुनि केशीकुमारजी ने प्रस्तुति दी। दस धर्मों में एक ब्रह्मचर्य धर्म पर साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। ब्रह्मचर्य धर्म पर मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने गीत का संगान किया। साध्वी स्तुतिप्रभाजी ने ध्यान दिवस पर गीत का संगान किया। ध्यान दिवस पर साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने ध्यान के महत्त्व को व्याख्यायित किया।
जन-जन को मानवता का संदेश प्रदान करने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के वर्णन के साथ जोड़ते हुए भगवान महावीर की आत्मा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में गर्भस्थ होती है। भगवान महावीर के पांच प्रसंग एक ही नक्षत्र में सम्पन्न हुए। प्रभु महावीर की आत्मा दशम देवलोक से च्युत हुई तब चौथे अर का अंतिम समय था। उस समय आषाढ़ शुक्ला षष्ठी को वैशाली नगरी के उपनगर ब्राह्मणकुण्ड नामक गांव में ऋषभदत्त नामक ब्राह्मण की पत्नी देवानंदा के गर्भ में गर्भस्थ होती है। पुनः इन्द्र के निर्देश पर देवानंदा के गर्भ को क्षत्रीय सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशला की गर्भ में स्थापित किया और त्रिशला के गर्भ को देवानंदा के गर्भ में स्थापित कर दिया गया। शिशु का विकास अब त्रिशला के गर्भ में हो रहा है। गर्भस्थ शिशु मां को कष्ट न हो इसके लिए अपना हलन-चलन बंद कर किया तो मां दुःखी हो गयी। मां को दुःखी देख बालक ने पुनः अपना हलन-चलन प्रारम्भ कर दिया। माता-पिता कितने उपकारी होते हैं। उस शिशु ने गर्भ में ही यह प्रतिज्ञा कर ली कि माता-पिता के संसार में रहते हुए साधु दीक्षा नहीं स्वीकार करूंगा। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को रात्रि में जन्म हुआ। बालक के जन्मोत्सव मनाया गया।
आचार्यश्री ने ध्यान दिवस के संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ध्यान अपने आप में साधना है। हमारे यहां प्रेक्षाध्यान की पद्धति प्रचलित है। 30 सितम्बर को प्रेक्षाध्यान दिवस पर प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का शुभारम्भ होने वाला है। प्रेक्षाध्यान दिवस गुरुदेव तुलसी के शासनकाल में व मुनि नथमलजी (टमकोर) के योगदान से प्रारम्भ हुआ। वह केवल तेरापंथ के लिए नहीं, जैन-अजैन सभी के लिए कारगर बना। प्रेक्षाध्यान साधना का एक उपक्रम है। आज भी कितने लोग ध्यान का प्रयोग करने वाले होंगे। अनेक रूपों में ध्यान हो सकता है। दीर्घश्वास, समताल, शरीर प्रेक्षा, अनुप्रेक्षा, कायोत्सर्ग आदि अनेक विधियां हैं। आदमी अपने जीवन में यथायोग्य ध्यान का भी अभ्यास करें, यह काम्य है।
पर्युषण के शिखर दिवस के संदर्भ में प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री ने आगे कहा की कल महान दिन है। भगवती संवत्सरी का दिन है। वह पर्युषण का मानों सरताज दिन है। उसे आध्यात्मिक रूप में मनाने का प्रयास होना चाहिए। चारित्रात्माओं को तो उस दिन चौविहार उपवास रखना होता ही है। इसके साथ श्रावक-श्राविकाएं भी उपवास करते हैं। इससे छोटे बालकों को भी संयम के साथ यथासंभव जोड़ने का प्रयास किया जा सकता है। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आवश्यक जानकारी भी दी।
भगवती संवत्सरी कल : उपवास, तपस्या, प्रतिक्रमण द्वारा आराधना
आचार्य श्री के सान्निध्य में कल संवत्सरी महापर्व मनाया जायेगा। जिसके तहत धर्मावलाबी चौविहार, तिविहार उपवास करेंगे। साथ ही सैकड़ों तपस्वियों द्वारा अठाई तप का प्रत्याख्यान किया जायेगा। प्रातः 07 बजे से महावीर समवसरण में प्रवचन कार्यक्रम प्रारंभ हो जाएगा जिसके तहत आचार्यश्री एवं अन्य साधु-साध्वियों जैन इतिहास, दर्शन, तत्व आदि पर वक्तव्य देंगे। हजारों श्रावक–श्राविकाएं पौषध द्वारा भी संयम विहार में रहकर धर्म आराधना करेंगे।