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जोशीमठ :आपातकालीन परिस्थितियों की तैयारी, रिसर्च भी जारी

जोशीमठ करीब 500 मीटर ऊंचे मलबों के पहाड़ पर बसा है। वो मलबे अतीत में हुए भूस्खलन के हैं। इस कारण जमीन हल्की है, उसमें कड़ापन नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि जमीन के खालीपन बहुत है जो वक्त-वक्त पर सिकुड़ते हैं और फिर दरारें उभरने लगती हैं। मौके पर जाकर अध्ययन करने वाली विशेषज्ञों और केंद्र सरकार की टीम ने अपनी प्राथमिक रिपोर्टों में यही कहा है। रिपोर्टों के मुताबिक, स्थानीय आबादी और पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी को भी जोशीमठ की धरती झेल नहीं पा रही है। जोशीमठ में घरों की दरारों को देख दिल दहल उठता है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित जोशीमठ में सड़क फट रहे हैं, मकानों की दीवारें दरक रही हैं, जमीन दो फाड़ हो रही हैं। इलाके में सरकारी परियोजनाओं को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, खासकर बिजली परियोजनाओं और सुरंगों को। लेकिन विकास परियोजनाएं तो देश के अन्य हिस्सों में भी होते हैं, बल्कि उत्तराखंड के बाकी इलाकों में भी हुए हैं और हो रहे हैं। वहां तो जमीन दरकने की समस्या तो नहीं हो रही? तो सवाल है कि आखिर जोशीमठ में ऐसा क्या है कि परेशानियों को दूर करने के लिए हुई सड़क, बिजली की व्यवस्था से ही परेशानी हो गई? इसका बहुत हद तक जवाब उसकी भौगोलिक स्थिति में मिल जाता है। वर्ष 2006 की एक वैज्ञानिक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि जोशीमठ प्रति वर्ष एक सेंटीमीटर धंस रहा है। जोशीमठ शहर के साथ-साथ कामेत और सेमा गांव वाला ब्लॉक में यह समस्या हो रही है।

सरकारी सूत्रों ने कहा कि क्या सच में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) के लिए खोदे गए सुरंगों के कारण जोशीमठ डूब रहा है, एक्सपर्ट्स इस सवाल का जवाब जानने में जुटे हैं। जोशीमठ में नौ वार्ड हैं। इनमें चार वार्डों में जमीन फटने की समस्या हो रही है। केंद्रीय टीम ने बताया है कि 600 से ज्यादा घरों को नुकसान हुआ है। ध्यान रहे कि एनटीपीसी इस इलाके में अपनी पनबिजली परियोजना के लिए दो सुरंगें खोद रहा है। भूवैज्ञानिकों ने इसका विरोध किया। उनका कहना है कि अगर सुरेंगे खोदने का काम नहीं रुका तो जोशीमठ को डूब जाएगा। जोशीमठ बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब का प्रवेश द्वार है।केंद्र सरकार ने जोशीमठ की समस्या के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की टीमें तैनात कर रखी हैं। वहीं, आईआईटी रुड़की, भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण (Geological Survey of India), वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियॉलजी, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (National Institute of Hydrology) और केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (National Institute of Hydrology) जोशीमठ के लिए तत्कालीन और दीर्घकालीन योजना बनाने के लिए स्थितियों का अध्ययन कर रहे हैं। एक्सपर्ट्स ने बताया है कि जमीन से पानी बाहर फेंकने की समस्या से तुरंत निपटना होगा।

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